सुस्वागतम

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने शाही स्वागत को दिखाने का प्रयास किया है ,जो एक आदमी के द्वारा तुरही बजाकर किया जाता है | जैसा की हमने हमारी पेंटिंग में दिखाया है –की एक आदमी शाही वेशभूषा में तुरही बजा रहा है तुरही –पीतल का बना आठ –दस फुट लम्बा वाद्ये ,जिसका मुख छोटा व आकृति नोकदार होती है | होठ लगाकर फूँकने पर तीखी ध्वनि निकलती है | प्राचीन काल में दुर्ग एवं युद्ध स्थलों में इसका वादन होता था | प्राचीन काल में तुरही का विशेष महत्व था , क्योकि जब भी युद्ध होता तो युद्ध स्थल पर युद्ध की शुरुआत से पहले तुरही बजकर चेतावनी दी जाती थी - ,की अब आक्रमण किया जा सकता है |ऐसे ही जब किसी दुसरे राज्ये के राजा यहाँ पर मेहमान बनकर आते तो उस समय तुरही बजाकर उदघोष व स्वागत किया जाता था |युद्ध स्थल से लेकर अतिथि के आगमन तक ,प्राचीन काल में तुरही का विशेष महत्व था | आज इस युग में इसे सुस्वागतम के रूप में देखा जाता है ||तुरही बजाने वालो की कद- काठी का विशेष ध्यान रखा जाता था ,और उनका पहनावा मनमोहक होता था , और तुरही बजाने वाले आदमी की शख्सियत बहुत महत्व रखती है , आज भी इस तरह की सुवागातम की पेंटिंगो को फाइव स्टार होटल्स , सेवन स्टार होटल्स व बड़े बड़े वीला में लगाई जाती है ,जो वहा की शानो-शोकत को बढ़ाने में अपना योगदान देती है ||