भोग विलास

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने मुग़ल शासन काल के राजाओ का भोग-विलास दिखाया है ,, महल की छत पर मसन्ड के सहारे बैठ कर राजा अपनी रानी को अपनी बाहो में लिए मदिरा का सेवन करा रहा है ,,राजा और रानी दोनों ही इस भोग विलास का आनंद उठा रहे है और राजा के पीछे बैठी एक महिला राजा को मदिरा पेश कर रही है ,,,जब एक उम्र का पड़ाव आ जाता है तो राजा को भोग विलास करने के लिए अन्य रानिया अर्द्ध नग्न अवस्था में बैठ कर राजा को उतेजित करती है ,,,,सही मायने में वो एक हरम की तरह ही होता था वही दो रानिया एक दुसरे के साथ मदिरा में डूबी हुई अपने योवन का आनद उठा रही है ,, मुग़ल सम्राट रनिवास में अपने भोग विलास में डूबे हुए दिखाया है इस मुग़ल काल की पेंटिंग में छत की जो मुंडेर का दृश्य है और वहा से उड़ते हुए पक्षी और पेड़ पोधो की हरियाली इस पेंटिंग को और भी अधिक रोचक बना रहे है इन महिलाओ का जो श्रृंगार दिखाया है वह राजश्री ठाट-बाट के साथ कुछ खास दिखाया गया है | तत्कालीन समाज में वेश्यावृति को सम्राट का संरक्षण प्रदान था। उसकी एक बहुत बड़ी हरम थी जिसमे बहुत सी स्त्रियाँ थीं। इनमें अधिकांश स्त्रियों को बलपूर्वक अपहरण करवा कर वहां रखा हुआ था। उस समय में सती प्रथा भी जोरों पर थी। तब कहा जाता है कि अकबर के कुछ लोग जिस सुन्दर स्त्री को सती होते देखते थे, बलपूर्वक जाकर सती होने से रोक देते व उसे सम्राट की आज्ञा बताते तथा उस स्त्री को हरम में डाल दिया जाता था। हालांकि इस प्रकरण को दरबारी इतिहासकारों ने कुछ इस ढंग से कहा है कि इस प्रकार बादशाह सलामत ने सती प्रथा का विरोध किया व उन अबला स्त्रियों को संरक्षण दिया। अपनी जीवनी में अकबर ने स्वयं लिखा है– यदि मुझे पहले ही यह बुधिमत्ता जागृत हो जाती तो मैं अपनी सल्तनत की किसी भी स्त्री का अपहरण कर अपने हरम में नहीं लाता। इस बात से यह तो स्पष्ट ही हो जाता है कि वह सुन्दरियों का अपहरण करवाता था। इसके अलावा अपहरण न करवाने वाली बात की निरर्थकता भी इस तथ्य से ज्ञात होती है कि न तो अकबर के समय में और न ही उसके उतराधिकारियो के समय में हरम बंद हुई थी। आईने अकबरी के अनुसार अब्दुल कादिर बदायूंनी कहते हैं कि बेगमें, कुलीन, दरबारियो की पत्नियां अथवा अन्य स्त्रियां जब कभी बादशाह की सेवा में पेश होने की इच्छा करती हैं तो उन्हें पहले अपने इच्छा की सूचना देकर उत्तर की प्रतीक्षा करनी पड़ती है; जिन्हें यदि योग्य समझा जाता है तो हरम में प्रवेश की अनुमति दी जाती है। अकबर अपनी प्रजा को बाध्य किया करता था की वह अपने घर की स्त्रियों का नग्न प्रदर्शन सामूहिक रूप से आयोजित करे जिसे अकबर ने खुदारोज (प्रमोद दिवस) नाम दिया हुआ था। इस उत्सव के पीछे अकबर का एकमात्र उदेश्य सुन्दरियों को अपने हरम के लिए चुनना था। गोंडवाना की रानी दुर्गावती पर भी अकबर की कुदृष्टि थी। उसने रानी को प्राप्त करने के लिए उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के दौरान वीरांगना ने अनुभव किया कि उसे मारने की नहीं वरन बंदी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, तो उसने वहीं आत्महत्या कर ली। तब अकबर ने उसकी बहन और पुत्रबधू को बलपूर्वक अपने हरम में डाल दिया। अकबर ने यह प्रथा भी चलाई थी कि उसके पराजित शत्रु अपने परिवार एवं परिचारिका वर्ग में से चुनी हुई महिलायें उसके हरम में भेजे।मुग़ल शासन में राजा अकबर का एक हरम खाना हुआ करता था ,जिसमे रानी के साथ वो भोग विलास करते थे चुकी उनकी उम्र का पड़ाव देखते हुए वहा पर अन्य स्त्रिया अपने अर्द्न नग्न अवस्था में बैठ कर राजा को सेक्सवल रूप से अपनी और आतुर करती थी ,यह सब रनिवास में होता था और कभी यही संध्या काल में महल की छत पर मिन्डोर के पास होता था ,जिसमे राजा फल-फ्रूट ,शराब इत्यादि का सेवन करके मुग़ल शासक अपना भोग-विलास करते थे ||