विलास-चर्या

English

(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने यह दिखाया है की रनिवास में दो रानिया एक – दुसरे के साथ समलैगिकता में डूबी हुई है , जो दोनों ही अर्द्ध नग्न अवस्था में है , और इसके साथ ही वह मदिरा पान भी कर रही है , एक और एक दासी रानी को मदिरा पेश कर रही है ,दूसरी और एक एक दासी अपना अंग प्रदर्शन कर रही है , और राजा की अनुपस्थिति में समलैगिकता का आनंद उठा रही है अगर देखा जाए तो हिंदू शास्त्र समलैंगिक कामुकता पर काफी हद तक मौन हैं. समलैंगिकता की आधुनिक धारणा को समलिंगी व्यक्त प्रति समलैगिकता सक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जबकि प्राचीन भारत में असंगत आचरण या क्वीयरनेस का अर्थ सामान्य से अलग यौन या लैंगिक आचरण था. ऐसा लगता है कि समलिंगी गतिविधि या कहें कि पुराने लोगो की मौजूदा धारणा की जड़ें भारतीय इतिहास के मुगल काल में देखी जा सकती हैं. जैसी कि हमने पहले चर्चा की है. कामसूत्र प्राचीन भारत में कामवासना और यौन सुख की जानकारी देने वाला मुख्य ग्रंथ है. स्त्री समलिंगी यौनाचार को हमेशा औरतों की परिस्थितियों से संचालित माना गया है. अर्थात् पुरुष साथी की अनुपस्थिति और इसे हमेशा व्यक्तिगत शौक का दर्जा मिला है. आधुनिक युग में धारणा इसके एकदम विपरीत है. इसमें मूल स्त्री समलैंगिकता को स्त्री के वश से बाहर माना गया है, जबकि शौकिया स्त्री समलैंगिकता को स्त्री खुद चुनती है हालांकि समलिंगी पुरुष के लिए ऐसी कोई संभावना नहीं है. काम सूत्र में हरम संबंधी अध्याय में प्राचीन भारत में स्त्री समलिंगी संबंधों का वर्णन मिलता है. हरम में अनेक स्त्रियां पुरुषों की अनुपस्थिति में रहती थीं. जब कई रानियों का एक राजा होता था और वह भी शासन के कार्यों मे व्यस्त रहता था. इसलिए महिलाएं छद्म लिंग, पुरुष लिंग से मिलते-जुलते बल्ब, जड़ों या फलों का उपयोग किया करती थीं. इसका अर्थ यह हुआ कि स्त्री समलिंगी संबंध तभी होते हैं, जब पुरुष नहीं होता. तो रानिया महलों में अपने ही रनिवास में समलैगिक का लुफ्त उठाती थी | जिसमे रानिया और अन्य दासिया अर्द्ध नग्न अवस्था में , मदिरा पान का आनंद उठाते हुए , अपनी जवानी और योवन का समलिगी द्वारा सुख का आभास करती थी | ये प्रथा मुग़ल काल से चली आ रही है ||