वेणी श्रृंगार
English(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )
इस पेंटिंग में कलाकार ने एक महल की बालकनी का दृश्य दिखाया है जिसमे एक रानी सोलह श्रृंगारो के साथ सजी हुई बैठी है और दासी उनकी वेणी का श्रृंगार कर रही है और वेणी के श्रृंगार से पहले चन्दन का तेल लगाया जाता और फिर लम्बे बालो की वेणी का श्रृंगार करते दिखाया है और इस तरह इस पेंटिंग का यह दृश्य हर किसी के मन को लुभाने वाला है या लुभाता हुआ नजर आता है | महिला और शृंगार का चोली-दामन का साथ रहा है। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में सोलह शृंगार का खासा महत्व है। एक महिला को नख से शिख तक सजाने वाले इन सोलह शृंगारों की अहमियत त्योहारों में और और बढ़ जाती है। इस मौके पर महिलाएं विभिन्न शृंगारों में कई तरह की तब्दिलियां आई हैं और कुछ शृंगार तो ऐसे हैं, जिनकी पारंपरिक शृंगार-पद्धति आज भी कायम है। भले ही इनके रूप और नाम बदल गए हों। केश विनयास के बिना तो एक महिला का शृंगार अधूरा रहता है। इसमें वे बालों को सुगंधित तेल लगाकर संवारती है। बालों में सुगंधित धूप का धुआं भरती हैं। यह केशसज्जा का ही एक हिस्सा ह शुरू से ही शरीर को सुगंधित करना महिलाओं के शृंगार का एक अहम हिस्सा रहा है। पहले महिलाएं माथे पर केशर की आड़ी लकीर और कानों में इत्र का फाहा लगाती थीं। इससे दिन भर उनका शरीर महकता रहता था। यह शृंगार कर महिलाएं अपनी शोभा, समृद्धि तथा कलात्मक अभिरूचि का प्रदर्शन करती हैं। इसमें सिर से लेकर पांव तक सोना, चांदी और कांसे से बने आभूषण पहने जाते हैं। फूलों की वेणी - दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूल लगाए जाए उसका श्रृंगार फीका लगता है। दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में तो महिलाएं रोज फूलों का गजरा लगाती है, जबकि उत्तर भारत में फेरों के दौरान महिलाएं ढ़ीली वेणी गूंथ कर उसमे फूल पहनती है। - बिछुड़ी - पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को बिछुड़ी कहा जाता है। पैरों के अंगूठे और छोटी अंगुली को छोड़कर बीच की तीन अंगुलियों में चांदी का विछुआ पहना जाता है। इस आभूषण में तरह-तरह की सुंदर आकृतियां, जैसे मछली, मोर, तितली, फूल, पत्तियां आदि बनी होती हैं। - पायल- पैरों में पहने जाने वाले आभूषण को पायल कहते है। इसमें घुंघरू लगे होते है। यह आभूषण हमेशा सिर्फ चांदी का ही होता है। पायल पहनने से जब स्त्री चलती है, तो उसके पैरों से आने वाली रुनझुन की आवाज से घर का माहौल मधुर लगता है। एक तो इतने सुन्दर महल ,ऊपर से रानी का श्र्रंगार और वो सुन्दर चेहरा और वो साज-सज्जा , जिसे देखकर हर कोई मोहित हो जाये ,,किस तरह बालकनी के सहारे बैठकर रानिया मंद –मंद हवा लेती थी , और अपनी वेणी का श्रंगार करवाती थी | ये महल हमारे राजस्थान की धरोहर है ,जिसका इतिहास में विवरण दर्ज है ||