रंगोत्सव

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने यह दिखाने का प्रयास किया है होली जो की एक रंगों का त्यौहार है ,वो मुग़ल काल में शाही होली के रूप में किस तरह खेली जाती थी | होली वंसत ऋतू में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है | यह पर्व हिन्दू पंचाग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है | होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है , जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था |वसंत ऋतू में हर्षोल्लास के साथ मनाये जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा जाता है | इतिहासकारों का मानना है की आयरे में भी इस पर्व का प्रचलन था | लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था | इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तको में मिलता है | इनमे प्रमुख है जैमिनी के पूर्व मिमासा सूत्र और कथा गार्हम – सूत्र | नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियो और ग्रंथो में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है | विद्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा में 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है | संस्कृत साहित्य में वसंत ऋतू और वसंतोत्सव अनेक कवियो के प्रिय विषय रहे है |सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने एतिहासिक यात्रा स्मरण में होलिकत्सव का वर्णन किया है | भारत के अनेक मुस्लिम कवियो ने अपनी रचनाओ में इस बात का उल्लेख किया गया है | होलिकोत्सव केवल हिन्दू ही नही कई मुसलमान भी मनाते है | सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरे है | 13 शदाब्दी में अमीर खुसरो ने (1253-1325)अपनी पुस्तक में मुग़ल काल की होली का उल्लेख किया है |प्राचीन में अविरल होली मनाने की परम्परा को मुगलों के शासन में भी अवरुद्ध नही किया गया बल्कि कुछ मुग़ल बादशाहो ने तो धूमधाम से होली मनाने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया | अकबर, हुमायु, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुर शाह जफर होली के आगमन से बहुत पहले ही रंगोत्सव की तैयारियां प्रारम्भ करवा देते थे | अकबर के महल में सोने चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था | और राजा अपनी बेगम और हरम की सुन्दरियों के साथ होली खेलते थे | शाम को मेहमानों का स्वागत किया जाता था |और मुशायरे, कव्वालियो और नृत्य –गानों की महफिले जमती थी |जहाँगीर के समय में महफ़िल-ए-होली का भव्य कार्यक्रम आयोजित होता था |इस अवसर पर राज्य के साधारण नागरिक बादशाह पर रंग डालने के अधिकारी होते थे |शाहजहाँ होली को ईद गुलाबी के रूप में धूमधाम से मनाता था |बहादुरशाह जफर होली खेलने के बहुत शोकिन थे और होली को लेकर उनकी सरस काव्य रचनाएँ आज तक सराही जाती है | मुग़ल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पिछवाड़े यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली के मेले लगते थे |मुग़ल शैली के एक चित्र में औरंगजेब के सेनापति शायस्था खां को होली खेलते हुए दिखाया गया है दाहिनी और दिए गये चित्र की पृष्ठभूमि में आम के पेड़ है व महिलाओ के हाथ में पिचकारियाँ है और रंग के घड़े है |मुग़ल काल की और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले है | अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है |अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है | शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुगलिया अंदाज ही लिया गया था | इतिहास के जमाने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी ( रंगों की बोछार ) कहा जाता है |अंतिम मुग़ल बादशाह जफर के बारे में प्रसिद्ध है की होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे | मध्ययुगीन हिंदी साहित्य में दर्शित कृष्ण की लीलाओ में भी होली का विस्तृत वर्णन मिलता है |