पन्नाधाय का बलिदान

English

(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने कुमलगढ़ महल में कुंवर उदयसिंह और महारानी कर्मावती को पन्ना धाय के द्वारा निहारते हुए दिखाया है जो की पन्ना धाय के बलिदान की एक कहानी का दृश्य है | और कुभलगढ़ महल में पन्नाधाय जो एक दासी थी उसको चुनरी की साड़ी में दिखाया गया है और कर्मावती जो की एक महारानी है उसको राजश्री चुन्नी और घाघरा की पोशाक में दिखाया है और महारानी के मस्तक पर बेस कीमती बोरला , गले में सोने का हीरो से जड़ा हार , हाथो में सोने की चूड़िया और कंगन ये सब उनके महारानी होने का अहसास करा रहे है और दोनों माताओ के बीच में कुंवर उदयसिंह को अठखेलिया करते दिखाया गया है | पन्ना धाय का पूरा नाम पन्ना धाय जन्म भूमि कमेरी गाँव , राजस्थान परिचय पन्ना धाय राणा सांगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थी | अन्य जानकारी मेवाड़ के इतिहास में जिस गोरव के साथ प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप को याद किया जाता है , उसी गोरव के साथ पन्ना धाय का नाम भी लिया जाता है , जिसने स्वामिभक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था | पन्ना धाय राणा सांग के पुत्र उदयसिंह की धाय माँ थी | पन्ना धाय किसी राज परिवार की सदस्य नही थी | अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गांव में हुआ था | राणा सांगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दुध पिलाने के कारण पन्ना धाय माँ कहलाई थी | पन्ना का पुत्र और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे | उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था | पन्ना धाय ने उदयसिंह की माँ कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था | पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की | पन्ना चित्तोड़ के कुम्भा महल में रहती थी | पुत्र का बलिदान – चित्तोड़ का शासक , दासी का पुत्र बनवीर बनना चाहता था | उसने राणा के वंशजो को एक-एक कर मार डाला | बनवीर एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की और चल पड़ा | एक विश्वस्त सेवक द्वारा पन्ना धाय को इसकी पूर्व सुचना मिल गई | पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजक थी व उदयसिंह को बचाना चाहती थी | उसने उदयसिंह को एक बांस इ टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पतलो से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महल से बाहर भेज दिया | बनवीर को धोखा देने के उदेश्य से अपने पुत्र को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया | बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा | पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की और संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया हुआ था | बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझ कर मार डाला | पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही | बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आँसू भी नही बहा पाई | बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी | स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धाय है | जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे अपने पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया था | पुत्र की मृत्यु के बाद पन्ना उदयसिंह को लेकर बहुत दिनों तक , कई सप्ताह तक शरण के लिए भटकती रही पर दुष्ट बनवीर के खतरे के डर से कई राजकुल जिन्हें पन्ना धाय को आश्रय देना चाहिय था , उन्होंने पन्ना धाय को आश्रय नही दिया | पन्ना धाय जगह-जगह राजद्रोहियो से बचती , कतराती तथा स्वामिभक्त प्रतीत होने वाले प्रजाजनों के सामने अपने को जाहिर करती भटकती रही | कुम्भलगढ़ में उसे यह जाने बिना की उसकी भवितव्यता क्या है शरण मिल गयी | उदयसिंह किलेदार का भांजा बनकर बड़ा हुआ | तेरह वर्ष की आयु में मेवाड़ी उमरावो ने उदयसिंह को अपना राजा स्वीकार कर लिया और उसका राज्याभिषेक कर दिया | उदयसिंह 1542 में मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए | स्वामिभक्त मेवाड़ के इतिहास में जिस गोरव के साथ प्रातः स्मरणीय महाराजा प्रताप को याद किया जाता है , उसी गोरव के साथ पन्ना धाय का नाम भी लिया जाता है , जिसने स्वामिभक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था | इतिहास में पन्ना धाय का नाम स्वामिभक्ति में स्वर्णक्षरो में लिखा गया है ||