कंस वध

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने कंस वध का एक दृश्य दिखाया है | कृष्ण और बलराम द्वारा मथुरा में प्रवेश करने के बाद कंस के शस्त्रागार में भी पहुच गये और वहा के रक्षक को समाप्त कर दिया | इतना करने के बाद निश्चित रूप से ज्ञात नही हो पाता की दोनों भाइयो ने रात कहा बिताई , और कंस ने ये उपद्रवपूर्ण बाते सुनी | उसने चाणूर और मुष्टिक नामक अपने पहलवानों को कृष्ण-बलराम के वध के लिए सिखा पढ़ा दिया |शायद कंस ने यह भी सोचा की उन्हें रंग भवन में घुसने से पूर्व ही क्यों न हाथी द्वारा कुचलवा दिया जाये , क्योकि भीतर घुसने पर वे न जाने कैसा वातावरण उपस्थित कर दे | प्रात; होते ही दोनों भाई धनुर्याग का दृश्य देखने राजभवन में घुसे। ठीक उसी समय पूर्व योजनानुसार कुवलयापीड़ नामक राज्य के एक भयंकर हाथी ने उन पर प्रहार किया, तो भगवान श्री कृष्ण ने उस कुवलयापीड़ हाथी को अपनी ताकत से दे मारा और उसे मारकर उस पागल हाथी का एक दांत उखाड़ लिया और भीतर जाकर कृष्ण चाणूर से और बलराम मुष्टिक से भीड़ गये | इन दोनों पहलवानों को समाप्त कर कृष्ण ने तोसलक नामक एक अन्य योद्धा को भी मारा | कंस के शेष योद्धाओं में आंतक छा जाने और भगदड़ मचने के लिए इतना कृत्य यथेष्ट था | कृष्ण कंस को मारने के लिए उसके सिंहासन की और दोड़ पड़े , जहा कंस अपने सिंहासन पर बैठा अपने दास के द्वारा चंवर से ठण्डी हवा खा रहा था , कृष्ण वही पहुचे इसी कोलाहल में कृष्ण ऊपर बैठे हुए कंस पर झपटे और पापी कंस के केश पकड़ कर सिंहासन से नीचे पटका और उसे उसके पापो की याद दिलाई और फिर उस कुवलयापीड हाथी के दांत से उस पापी कंस का नाश कर दिया और उसको भी परलोक पहुंचा दिया | इस भीषण कांड के समय कंस के सुनाम नामक भृत्य ने कंस को बचाने की चेष्टा की , किन्तु बलराम ने उसे बीच में ही रोक उसका वध कर डाला ||