सूफी संत द्वारा जहाँगीर को उपदेश

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार सूफी शेख द्वारा जहागीर को दिए गये उपदेश का एक दृश्य दिखा रहा है जहा पर सूफी शेख के साथ साथ अन्य देश के तीन राजा भी मोजुद है , और राजा जहागीर के सिर के पीछे सूरज के समान चक्र दिखाया गया है और सूरज के समान तेज वाला वह चक्र राजा की बादशाही का प्रतीक है | जहागीर एक ऊचे पत्थर जडित मंच पर बैठे है ,, इस पेंटिंग में जो पांच मानव चित्र को चित्रित किया गया है उनमे सबसे बड़े सम्राट है | जहागीर के हाथ साफ़ है और कलाई में रत्न जडित कंगन और उंगली में छल्ले दिखाए है और सूफी शेख के साधारण हाथ है , इन दोनों के हाथो को देखकर ही इनके बीच अमीरी और गरीबी का अंतर दिखाई देता है |बुजुर्ग शेख के द्वारा दिए गये ग्रन्थ को राजा सम्मान जनक मानता है और शेख के उपदेश को पसंद करते है , लेकिन शेख अपनी गरीबी के कारण इस ग्रन्थ को राजा को देने में हिचकिचाता है और एक साल में लपेट कर राजा की और करता है जिससे राजा के हाथो को शेख के हाथ छु न जाये लेकिन राजा शेख की हिचकिचाहट को समझ जाता है और उसी रूप में अपनी हथेलियों के माध्यम से उस ग्रन्थ को स्वीकार करता है , और शेख के बाद जो व्यक्ति इस चित्र में दर्शाया गया है वो एक विदेशी राजा है और उनके राजा होने का पता उनकी पोशाक को देखकर ही लगता है और जो तीसरे व्यक्ति है वह भी किसी अन्य देश के राजा है और चोथे व्यक्ति को देखकर व उनकी पोशाक देखकर उनके हिन्दू होने का पता चलता है इससे हमे पता चलता है की जहागीर के दरबार में सिर्फ मुस्लिम ही नही अपितु हिन्दू को भी सम्मान का अधिकार दिया गया था और सबको सम्मानता की दृष्टि से देखा गया था और उनके दरबार में हिन्दू और मुस्लिम को समान स्थान दिया गया था | जब भी राजा को इस तरह की कोई बेशकीमती चीज भेट की जाती थी तो कुछ रक्षक जिनको कलाकार ने परियो के रूप में दिखाया है वो इस बहु मूल्य चीज की सुरक्षा करते थे |