रनिवास
English(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )
इस पेंटिंग में कलाकार ने रनिवास का एक भव्य महल दिखाया है जहा महारानी के लिए क्रीडा स्थल हुआ करता था और अपने रनिवास में सिंहासन पर बैठी महारानी और उनके पास में सेवारत खड़ी दासिया दिखाई है इसमें दो दासिओ को महारानी के लिए ठंडाई लेके जाते हुए दिखाया है और चौक के बीच में एक सुन्दर सा फव्वारा दिखाया है फव्वारे के बाई और ढ़ोलक और तानपुरा बजाती दो महिलाये और एक महिला को खड़े होकर गायन करते दिखाया है,, और दाई और फर्श पर एक महिला को रंगोली बनाते दिखाई है ,,और एक महिला को महेंदी लगाते हुए और एक महिला को उस महेंदी को निहारते हुए दिखाई है और उनके पास ही एक महिला को महारानी के लिए ठंडाई बनाते हुए दिखाई है और एक महिला को पक्षियों को दाना खिलाते हुए दिखाई है और इस पेंटिंग में जो चारो और ऊँची दीवारे ,, और पेड़-पोधो की हरियाली ,,ने इस पेंटिंग को और भी अधिक आकर्षित बना दिया है | प्राचीन काल में हिंदू राजाओं का रनिवास अंतःपुर कहलाता था। यही मुगलों के जमाने में जनानखाना या हरम कहलाया। अंतःपुर के अन्य नाम भी थे जो साधारणतः उसके पर्याय की तरह प्रयुक्त होते थे, यथा- शुद्धांत और अवरोध। शुद्धांत शब्द से प्रकट है कि राजप्रासाद के उस भाग को, जिसमें नारियाँ रहती थीं, बड़ा पवित्र माना जाता था। दांपत्य वातावरण को आचरण की दृष्टि से नितांत शुद्ध रखने की परंपरा ने ही निःसंदेह अंतःपुर को यह विशिष्ट संज्ञा दी थी। उसके शुद्धांत नाम को सार्थक करने के लिए महल के उस भाग को बाहरी लोगों के प्रवेश से मुक्त रखते थे। उस भाग के अवरुद्ध होने के कारण अंतःपुर का यह तीसरा नाम अवरोध पड़ा था। अवरोध के अनेक रक्षक होते थे जिन्हें प्रतीहारी या प्रतीहाररक्षक कहते थे। नाटकों में राजा के अवरोध का अधिकारी अधिकतर वृद्ध ही होता था जिससे अंतःपुर शुद्धांत बना रहे और उसकी पवित्रता में कोई विकार न आने पाए। मुगल और चीनी सम्राटों के हरम या अंतःपुर में मर्द नहीं जा सकते थे और उनकी जगह खोजे या क्लीब रखे जाते थे। इन खोजों की शक्ति चीनी महलों में इतनी बढ़ गई थी कि वे रोमन सम्राटों के प्रीतोरियन शरीर रक्षकों और तुर्की जनीसरी शरीर रक्षकों की तरह ही चीनी सम्राटों को बनाने-बिगाड़ने में समर्थ हो गए थे। वे चीनी महलों के सारे षड्यंत्रों के मूल में होते थे। चीनी सम्राटों के समूचे महल को अवरोध अथवा अवरुद्ध नगर कहते थे और उसमें रात में सिवा सम्राट के कोई पुरुष नहीं सो सकता था। क्लीबों की सत्ता गुप्त राजप्रासादों में भी पर्याप्त थी। जैसा -संस्कृत नाटकों से प्रकट होता है, राजप्रासाद के अंतःपुर वाले भाग में एक नजरबाग भी होता था जिसे प्रमदवन कहते थे और जहाँ राजा अपनी अनेक पत्नियों के साथ विहार करता था। संगीतशाला, चित्रशाला आदि भी वहाँ होती थीं जहाँ राजकुल की नारियाँ ललित कलाएँ सीखती थीं। वहीं उनके लिए क्रीड़ा स्थल भी होता था। संस्कृत नाटकों में वर्णित अधिकतर प्रणय षड्यंत्र अंतःपुर में ही चलते थे