शाही जश्न

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने एक शाही जश्न दिखाया है | जब भी महलो में शाही जश्न होता तो रानी के द्वारा दुसरे राज्ये की रानी को आमंत्रित किया जाता था ,और फिर जश्न की शुरूआत की जाती थी ,जश्न में आकर्षण का मुख्य केन्द्र होता था -_मदिरापान और संगीत | इस पेंटिंग के बीच में दो रानिया एक – दूसरी को मदिरा देते हुए दिखाई गई है जिसमे कुछ रानिओ को संगीत का विशेष शोक हुआ करता था वही एक और एक दासी द्वारा रानी को मदिरा पेश करते दिखाई है ,दूसरी और रानी की एक सखी हुक्के का आनंद ले रही है , वही दूसरी और एक सखी इस शाही जश्न को निहारते हुए दिखाई गई है | हिन्दुस्थान में जश्न की जब भी बात आती है तो मुग़ल काल के बादशाहओ की याद जरुर आती है और उसमे भी हमारे बादशाहओ के रनिवास , जो बहुत ही महत्त्व पूर्ण था | रनिवास का शाही जश्न एक से अनेक रानिया ,रनिवास में एक साथ इकठा होकर संध्या कालीन में सर –संगीत के साथ मनाती थी | और एक तो रानियो को संगीत का बहुत शौक था , दूसरा मदिरा पान और हुक्का ,| रानिया अपनी अन्य सहेलिओ और दासिओ के साथ कुछ खास मोको पर जश्न मनाती , जब भी राजा युद्ध में विजय होकर आते तो जश्न मनाते और जब कोई अन्य त्यौहार होता तो ,वो महल का राजश्री ठाठ – बाट और उसमे ये जश्न , ऐसा दृश्य होता की मन मोह लेता , और दासिया सेवा में तत्पर रहती और रानिया हुक्का व मदिरा का और संगीत का आनंद उठाती , इसलिए ये शाही जश्न अपने आप में महत्वपूर्ण है ||