रनिवास में हुक्का

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने यह दिखाया है की जब सांय कालीन भोजन के बाद राजा रानी के कक्ष में जाते तो उनके बैठने का विशेष स्थान हुआ करता था जहा मसंठ के सहारे बैठ कर राजा हुक्के का लुफ्त लिया करते थे वही रानी अपनी दासिओ को आदेश कर रही है राजा को हुक्का और मदिरा पेश करने के लिए वही दाई और बैठी एक पटरानी राजा को मदिरा पेश कर रही है यह कार्य सांय कालीन मोमबतियो की रौशनी में नियमित रूप से होता था और राजा रनिवास में हुक्का और मदिरा का आनंद लिया करता था | भारत में अकबर बादशाह से पूर्व तंबाकू के प्रयोग की कोई जानकारी इतिहास में दर्ज नहीं है। कहा जाता है कि जब अकबर के दरबार में वर्नेल नामक पुर्तगाली आया, तो उसने अकबर को तंबाकू और बहुत सुन्दर बड़ी सी जड़ाऊ चिलम भेंट की। बादशाह को चिलम बहुत पसन्द आई और उसने चिलम पीने की तालीम भी उसी पुर्तगाली से ली। अकबर को धूम्रपान करते देखकर उसके दरबारियों को बहुत आश्चर्य हुआ और उनकी इच्छा भी तंबाकू के धुएं को गले में भरकर बाहर फेंकने की हुई। इस प्रकार भारत में सन् 1609 के आस-पास धूम्रपान की शुरूआत हुई। कुछ विद्वानों के अनुसार तंबाकू को सबसे पहले अकबर बादशाह का एक उच्च अधिकारी बीजापुर से लाया था और उसे सौगात के तौर पर बादशाह को भेंट किया था। इसके बाद भारत के लोगों ने तंबाकू को चिलम में रखकर पीना शुरू किया। मुगलकाल में हुक्केे की शुरुआत भारत में हुक्के की शुरुआत मुगलकाल के दौरान हुई थी। 15वीं सदी में अकबर के शासनकाल में अब्दुल नाम के एक कारीगर ने हुक्के का आविष्कार किया था। उनका कहना था कि पानी के माध्यम से होने वाले धूम्रपान से सेहत को कोई नुकसान नहीं होता है। जबकि शोधों में यह तथ्य एकदम गलत साबित हुआ है। मुग़ल काल में जब हुक्के का प्रचलन चालू हुआ तो उसमे एक विशेष बात थी –की जब राजा सायकाल में रनिवास में भोजन करने के बाद हुक्के का आनंद लिया करते थे |रनिवास में राजा और रानी के द्वारा शराब ,मदिरा ,व फल –फ्रूट और हुक्के का आनंद लेना एक विशेष दिनचर्या में आता था | अर्ध-रात्रि में महलों के अन्दर ,झूमर की कम लाइट में राजा द्वारा रानी और दासियों के साथ हुक्के का आनंद लिया जाता था ||