प्रेम विलास
English(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )
इस पेंटिंग में कलाकार ने भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम क्रीड़ाये दिखाई है जैसे महल के खम्भे के सहारे बैठे भगवान श्रीकृष्ण व उनकी बाहों से हदय की और आती राधा का अलोकिक प्रेम दिखाया है , जिसमे कृष्ण राधा की वेशभूषाओ पर भी विशेष ध्यान दिया गया है इस अलोकिक प्रेम की मानव सभ्यता में एक अलग ही पहचान है | इस महल के खम्भे पर बने दो शेर और नक्काशिया और बीच में बने एक झूमर से यह पेंटिंग और भी अधिक मनमोहक लग रही है और राधा कृष्ण के इसी अलोकिक प्रेम को कलाकार ने नाम दिया है _ प्रेम-विलास | राधाकृष्ण की कुञ्ज विलास लीला सखी मंजरियो के सहयोग के बिना सम्पादित नही होती | सखी मंजरियो का इस लीला में उतना ही महत्व है ,जितना राधा कृष्ण का चैतन्य चरितामृत में महाप्रभु ने राय रामानंद के इस वाक्य की पुष्टि की है की सखिया ही इस लीला का विस्तार करती है और सखिया ही इसका आस्वादन करती है – सखिया राधा कृष्ण का मिलन कराकर निकुंज –लीला में अपना योगदान करती है |रूप ,रति .लवंगदी मंजरी भाव रखने वाली सखिया निकुंज में विविध प्रकार से राधा कृष्ण की सेवा कर लीला को पुष्ट करती है | किस प्रकार मंजरिया निकुंज में राधा कृष्ण की सेवा करती है इसका वर्णनं रूपगोस्वामी ने उज्जवल नीलमणि में सांकेतिक रूप से सखिभेद प्रकरण में और अपने स्त्रोतों में विशद रूप से किया है | स्त्रोतों में उन्होंने जिस प्रकार की राधा कृष्ण की सेवा की अभिलाषा व्यक्त की है उससे मंजरियो की विभिन्न प्रकार की सेवा का ज्ञान होता है |सच्चा प्रेम वही है जो कभी बढता या घटता नही है | मान देने वाले के प्रति राग नही होता , न ही अपमान करने वाले के प्रति द्वेष होता है | ऐसे प्रेम से मनुष्य निर्दोष दिखाई देता है |यह प्रेम मनुष्य के रूप में भगवान का अनुभव करता है | प्रेम ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रेम है |इस पेंटिंग में हमारे भगवान श्री राधे कृष्ण का प्रेम विलास दिखाया है ||