कृष्ण द्वारा नन्द गॉव की रक्षा
English(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )
इस पेंटिंग में कलाकार ने भगवान श्री कृष्ण द्वारा नन्द गांव की रक्षा करते दिखाया है गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है कथा यह है की देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था | इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरी विष्णु के अवतार है , भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची | प्रभु की इस लीला में यूं हुआ की एक दिन उन्होंने देखा के सभी नन्द गांव वासी उत्तम पकवान बना रहे है और किसी पूजा की तैयारी में जुटे है | श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मैया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे है , कृष्ण की बाते सुन मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे है | मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते है ? मैया ने कहा की वह वर्षा करते है जिससे अन्न की पैदावार होती है ,उनसे हमारी गायो को चारा मिलता है | भगवान श्री कृष्ण बोले हमे तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्युकी हमारी गाये वही पर चरती है इस दृष्टि से गोवर्धन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नही देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते है अत: ऐसे अह्कारी की पूजा नही करनी चाहिए | तो सभी गांव वाले श्री कृष्ण की बात से सहमत हो गये | लीलाधारी की लीला और माया कोन जाने – सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा की | देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी | प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी नन्द गांव वासी भगवान कृष्ण को बोलने लगे की सब इनका कहा मानने से हुआ है | तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ग्रामवासियो को उसमे अपने गाय और बछड़े समेत शरण लेने के लिए बुलाया |सभी ग्रामवासी दोड़ कर पर्वत के नीचे आ गये लेकिन कोई जीव-जन्तु नही आये तो गांव वालो ने कृष्ण से कहा – की – हे प्रभु सभी पशु-पक्षी और जीव-जन्तुओ का अब क्या होगा , तब मुरली मनोहर ने अपने तप और अपनी शक्ति से गोवर्धन पर्वत को आसमान में स्थिर कर दिया और अपनी मुरली निकाल कर बजाने लगे , मुरली की मधुर धुन सुनकर सभी जीव-जन्तु भगवान श्री कृष्ण के पास दोड़ कर आ गये इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र देव से नन्द गांव वासियो की रक्षा की | इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हें एहसास हुआ की उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नही हो सकता है | अत: वे ब्रम्हा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया | ब्रम्हा जी ने इन्द्र से कहा की आप जिस कृष्ण की बात कर रहे है वह भगवान विष्णु जी के साक्षात् अंश है और पूर्व पुरुषोत्तम नारायण है | ब्रम्हा जी के मुख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लजित हुए और श्री कृष्ण से कहा की प्रभु में आपको पहचान न सका इसीलिए अहकारवंश भुल कर बैठा | आप दयालु है और कृपालु भी , इसीलिए मेरी भुल क्षमा करे | इसके पश्चात् देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया | इस पुराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा जाने लगी | नन्द ग्राम वासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते है | गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है | व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है | गाय और बैलो को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है ||