गजेन्द्र मोक्ष

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने गजेन्द्र मोक्ष की कहानी का एक दृश्य दिखाया है जिसमे एक हाथियो का झुण्ड घूमते घूमते सरोवर किनारे पहुचे गया और प्यास लगने पर एक हाथी जल में उतर गया और पानी पिया लेकिन वही पर पहले से घात लगा कर बैठा था एक मगरमच्छ , और उस मगरमच्छ ने हाथी का पैर अपने मुंह में जकड लिया हाथी ने बहुत प्रयास किया अपने आप को मगरमच्छ के चगुंल से छुडवाने का , लेकिन वह सफल न हो सका , फिर दर्द और पीड़ा के मारे हाथी ने रोते रोते भगवान विष्णु की आराधना और स्तुति की , हाथी की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु गरुड़ पर विराजमान होकर आकास से धरती की और आये और उस मगरमच्छ का सिर अपने सुदर्शन चक्र से काटकर धड़ से अलग किया और हाथी को मगरमच्छ से मुक्त किया और पीड़ा से मुक्ति दिलाई | इस पेंटिंग का उद्देश्य ही दुःख और सुख दोनों में भगवान का सुमिरन करना है |श्री शुकर देवजी ने कहा है – जिसने पूवोक्त प्रकार से भगवान के भेदरहिन निराकार स्वरूप का वर्णन किया था उस गजराज के समीप जब ब्रम्हा आदि कोई भी देवता नही आये जो भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट विग्रहो को ही अपना स्वरूप मानते है साक्षात् श्री हरी जो सबके आत्मा होने के कारण सर्वदेवस्वरूप है वहा प्रकट हो गये | उपयुक्त गजराज को उस प्रकार दुखी देखकर तथा उसके द्वारा पढ़ी हुई स्तुति को सुनकर सुदर्शन – चक्रधारी जगदाधार भगवान इच्छानुरूप वेग वाले गरुड़जी की पीठ पर सवार हो स्तवन करते हुए देवताओ के साथ तत्काल उस स्थान पर पहुँच गये , जहाँ वह हाथी था |सरोवर के भीतर महाबली ग्राह के द्वारा पकड़े जाकर दुखी हुए उस हाथी ने आकाश में गरुड़ जी की पीठ पर चक्र को उठाये हुए भगवान श्री हरी को देखकर अपनी सुँढ को जिसमे उसने (पूजा के लिए) कमल का एक फुल ले रखा था ऊपर उठाया और बड़ी कठिनता से ‘सर्वपूज्य भगवान नारायण’ आपको प्रणाम है ,, यह वाक्य कहा उसे पीड़ित देखकर अजन्मा श्री हरी एकाएक गरुड़ को छोड़कर नीचे झील पर उतर आये | वे दया से प्रेरित हो ग्राहसहित उस गजराज को तत्काल झील से बाहर निकाल लाये और देवताओ के देखते-देखते चक्र से उस ग्राह का मुंह चीरकर उसके चगुंल से हाथी को उबार लिया | इसी लिए कहते है की जो सुख में सुमिरण करता है | तो दुःख में साक्षात् भगवान स्वयं रक्षा करने धरती पर पधारते है | इसी का उदाहरण है गजेन्द्र मोक्ष ||