आखेट

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(यह एक मुंह देखने वाला दर्पण है , और इस पर की गई कला को नक्काशी कहते है )

इस पेंटिंग में कलाकार ने एक मुग़ल काल का आखेट दिखाया है , जिसमे एक जंगल है जहा पर पहाड़ व पेड़-पोधे और वहा की हरियाली जंगल की शोभा बढ़ा रहे थे , और वहा के जीव-जन्तु शिकारियो से भयभीत रहते थे , जहा पर एक शक्तिशाली जीव कमजोर जीव को खा रहा है , यही इस प्रकृति का नियम है की जीव , जीव को खाकर पेट भरता है ,और जो सुरवीर व ताकतवर राजा होते थे वो अपने महल की शोभा बढ़ाने के लिए शेर और हिरन का शिकार करते थे | इस पेंटिंग में एक राजा और उसके दो सैनिक दिखाए गये है जिसमे एक राजा घोड़े पर सवार हो अपने तीर बाणों से शिकार कर रहा है ,दूसरी और एक पैदल भाला लिए हुए है , और दूसरा सैनिक घोड़े पर तलवार लिए हुए है ,और दोनों सैनिक दोनों और से एक शेर को घेर कर मारने का प्रयास कर रहे है , आखेट राजा अपने शोक के लिए करता था | आखेट चित्रों को केन्द्र में रखने से शैलचित्रो के तीन विकास –स्तर दिखाई पड़ते है ,-पहला जिनमे शिकारी कुल्हाड़ी और भाले लिए है | दूसरा , जिनमे शिकारी अधिकतर धनुष धारण किये है ,और तीसरा ,जिनमे वे घोड़ो या हथियो पर सवार है |डॉ. वि .श्री . वाकणकर ने उत्तर पुराश्मीय (अपर पेलिओलिथिक ) काल को शैल चित्रकला का स्वर्ण युग कहा है |इस युग में सामूहिक जीवन प्रारम्भ हो गया था | समूह में रहना ,शिकार करना ,सामूहिक भोजन ,समूह गीत और नृत्ये आदि , दैनिक क्रियाये लोकमानस के विकास के लिए सक्षम थी |जन्म से मृत्यु तक के जीवन में कुछ विशिष्ट अवसरों से जुड़े कार्य रूढ़ होने लगे थे | धार्मिक मान्यताये लोकविश्वास के रूप में दृढ हो गई थी | प्रकृति की चमत्कार् परक और प्रभावी शक्तियों के प्रति भय मिश्रित आस्था के बीच प्रस्फुटित होने लगे थे | आनंद और दुःख की अभिव्यक्तियों में जिस तरह सामूहिक भागीदारी थी , उसी तरह कलाओ के व्यक्तिकरण में प्रकट होती थी | कलाओ का दैनिक जीवन से सम्बन्ध तो था ही वे दैनिक जीवन का अनिवार्य अंग भी थी | शिकार को घेर कर नृत्ये करना और आनंद की भावना को कर , मुख और पदचालन आदि क्रियाओं से व्यक्त करना आखेट का मुख्य भाग था |इसी प्रकार कोई सामूहिक भाव शैलचित्रो का प्रेरेंनाकेंद्र रहा है और मेरी समझ में उनके पीछे प्रकृति के प्रकोप से रक्षा करने का लोकभाव ही प्रधान था , क्योकि इन चित्रों में विशालकाय शिकार ,पशु एवं जीवजन्तु की आकृतिया लिखने के दो ही अभिप्राय थे –अपने अप में किसी बाँधा पर विजय की भावना जाग्रत करना तथा प्रकृति की शक्तिओ पर आस्था से रक्षा की आशक्ति होती थी | हमारे यहाँ जितने भी मुग़ल काल में हिन्दू और मुस्लिम राजा हुए थे ,उनका अपना खुद का एक उधान हुआ करता था ,जिसमे वो राजा लोग अपनी सुर्विरता व कोशल दिखाने का शेर का शिकार करते थे ,जिसमे प्रमुख रूप से शेर और हिरन होते थे ,जिनका शिर धड़ सहित अपने महल में साज –सज्जा के लिए लगते थे ||